गाज़ीपुर जनपद की चलायमान रामलीला की समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक विरासत को बहुत खूबसूरती से दर्शाती है।
400 वर्षों से भी पुरानी परंपरा
गाजीपुर में रामलीला का मंचन पिछले चार सदियों से हो रहा है। यह चलायमान रामलीला के रूप में प्रसिद्ध है – यानी प्रत्येक दिन यह रामलीला एक नए स्थान पर होती है।
विजयदशमी पर 60 फीट के रावण का दहन
इस बार 2 अक्टूबर को गाजीपुर के लंका मैदान में 60 फीट ऊँचे रावण के पुतले का दहन होगा।
पुतला सात हिस्सों में बनाया गया है —
जूता (13 फीट), कमर, गला, घाघरा, और सिर सहित।
इसे क्रेन के माध्यम से खड़ा किया जाएगा और रात्रि 8 बजे जिला अधिकारी और पुलिस अधीक्षक की उपस्थिति में ऑटोमेटिक यंत्रों से जलाया जाएगा।
पुतला कलाकार छोटेलाल प्रजापति की विशेष भूमिका
वे 35 वर्षों से लगातार इन पुतलों का निर्माण कर रहे हैं।
उन्होंने यह कला मुस्लिम गुरु सादिक मियां से सीखी थी, जो सांप्रदायिक सौहार्द का एक सुंदर उदाहरण है।
रावण के पुतले के निर्माण में सैकड़ों बांस, कागज, सुतली व अन्य पारंपरिक सामग्री का उपयोग किया जाता है।
अन्य पुतलों का दहन
केवल रावण ही नहीं, बल्कि खर-दूषण, कुंभकरण, जटायु, कौवा, दरभंग मुनि, और सोने की लंका*जैसे पुतलों का भी विभिन्न दिनों और स्थानों पर दहन किया जाता है।
इससे रामलीला को और भी जीवंत और रोचक बनाया जाता है।
संस्कृति और साम्प्रदायिक सौहार्द का प्रतीक
गाजीपुर की यह रामलीला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि सांस्कृतिक एकता, सद्भाव और परंपरा की जीवंत मिसालहै। यहाँ हिंदू-मुस्लिम कलाकारों द्वारा मिलकर बनाए गए पुतले और रामलीला का मंचन भारत की गंगा-जमुनी तहजीब को उजागर करता है।













